KONA RUSHWAIYION KA
Monday, September 22, 2014
मै यू ही चुप-चाप,
तुम्हारे सिरहाने उम्मीदों की,
इक शांख छोड़ जाउंगा,
यु तो कुछ भी नहीं बदलेगा ,
लेकिन सच में सब कुछ बदल जायेगा।
मै यू ही चुप-चाप,
तुम्हारे सिरहाने उम्मीदों की,
इक शांख छोड़ जाउंगा,
यु तो कुछ भी नहीं बदलेगा ,
लेकिन सच में सब कुछ बदल जायेगा।
Wednesday, March 5, 2014
बस एक ख्वाब था..........
फिर तेरा चेहरा नज़र आया मेरे ख्वाबों में,
धुंधला सा , लेकिन अपना सा लगता है,
चुपके से आते हो , चुपके से जाते हो,
कौन हो , क्यों इतना सताते हो,
अपने होंठों पर क्या गुनगुनाते हो,
कानो में राग कोई बरसों का घोल जाते हो,
लम्हा फिर वही सुहाना होता है,
जैसे सदियों से हम मिलते हो,
मेरी पलके जब खुलती है,
तो तू नहीं !
मुस्कुरा कर खुद पर ही हंस लेता हूँ,
ये तो बस एक ख्वाब था
सच में अब ये जाना है,
रूप नया , नक्श नए,
क्या फिर कोई तैयारी है ?
मेरे सपनो में आने की.………।
मै यू ही चुप-चाप,
तुम्हारे सिरहाने उम्मीदों की,
इक शांख छोड़ जाउंगा,
यु तो कुछ भी नहीं बदलेगा ,
लेकिन सच में सब कुछ बदल जायेगा।
Saturday, March 1, 2014
मंज़ूर था हमे पर्दा तेरा ……
मै यू ही चुप-चाप,
तुम्हारे सिरहाने उम्मीदों की,
इक शांख छोड़ जाउंगा,
यु तो कुछ भी नहीं बदलेगा ,
लेकिन सच में सब कुछ बदल जायेगा।
हमेशा तुम्हारे बारे में ……
मैं रोज़ लिखता था तेरे बारे में
तुम्हारी अदाएं , मासूमियत , ख़ूबसूरती ,
अचानक उँगलियाँ थम गयी
क्या लिखू अब ?
तेरा मुस्कुराना ,
रूठ कर चले जाना ,
या फिर मुझे मनाना ,
तलाश है शब्दों की
शब्दों में छिपे विचारों की
जो बयां करे हमारी मोहब्बत ,
हाँ ! वही तो होगा प्यार
बेइंतेहा प्यार ………
जिसके लिए मैं जीता हूँ ,
जिसके लिए मैं मरता हूँ,
जिसे मैं लिखता हूँ ,
आज की सुबह रोशनाई भरी है ,
जो दिल में उमंगें ,
मन में नई तरंग ,
और जिस्म को जिस्म से जोड़ने वाली आश
ऐसे ही कुछ पल का इंतज़ार था,
मेरा लिखना शायद आज सार्थक हो जायेगा,
उँगलियों के पोर पर कलम लिखने को बेताब है
कलम को जब भी झटकता हूँ ,
रोशनाई पन्नो पर गिर कर
तेरा ही नाम लिख जाती है ,
इसका मतलब क्या समझू मैं ?
मुझे इश्क है तुमसे
या फिर उँगलियों , कलम को ,
आदत हो गयी है तुम्हारे बारे में लिखने की ………
तुम्हारी अदाओं को ,
तुम्हारे हुस्न कि नज़ाकत को पन्नो पर उतारने की ,
एक शब्द और क्या कहु !
जब ये रोशनाई ,
ये कलम ,
ये कोरे सफा तेरे दीवाने हो गए……
फिर मुझे क्यों रोकते हो ,
अपने पास आने से ,
प्यार करने से ,
खुद को बाँहों में भरने से ,
एक -टुक तुम्हे निहारने से ,
क्यों नही बुन जाने देते
हम दोनों के बीते पलों को एक कहानी में ,
मैं लिखता हूँ,
और मिटाता हूँ ,
फिर सोचता हूँ ,
और फिर लिखता हूँ ,
हमेशा तुम्हारे बारे में ……
मै यू ही चुप-चाप,
तुम्हारे सिरहाने उम्मीदों की,
इक शांख छोड़ जाउंगा,
यु तो कुछ भी नहीं बदलेगा ,
लेकिन सच में सब कुछ बदल जायेगा।
Monday, February 17, 2014
मेरे हिस्से में कुछ भी....
मै यू ही चुप-चाप,
तुम्हारे सिरहाने उम्मीदों की,
इक शांख छोड़ जाउंगा,
यु तो कुछ भी नहीं बदलेगा ,
लेकिन सच में सब कुछ बदल जायेगा।
शायद मुक़द्दस होंठ जवाब ही दे दे ...
मै यू ही चुप-चाप,
तुम्हारे सिरहाने उम्मीदों की,
इक शांख छोड़ जाउंगा,
यु तो कुछ भी नहीं बदलेगा ,
लेकिन सच में सब कुछ बदल जायेगा।
Subscribe to:
Posts (Atom)