Monday, September 22, 2014

मैं अब भी तेरे सहर में हूँ 


  मैं अब भी तेरे सहर में ,


बस तेरी गलियों को भूल गया ,


तेरी  आँखों में अपना जहाँ ढूँढ़ते-ढूढ़ते ,


खुद को जग में भूल गया ,


मैं अब भी तेरा हूँ ,


हाँ तेरे ही सहर में हूँ


पर तुझसे मिलना भूल गया


तेरी पलकों को उठते -गिरते,


जब मैं देखा करता था अब क्या कहु मैं जग से


हंस -हंस कर सपने मैं तेरे दिन में सोचा करता था जब तू रातों में घर में सोया करती थी सच कहता हु तब यादें तेरी मुझको बहुत सताया करती थी मैं अब भी तेरे सहर में हूँ बस तेरी गलियों में आना भूल गया


जो देखे थे साथ में सपने अपने वो तो तूने तोड़ दिया अब तो तूने मुझसे दिल की बातें करना छोड़ दिया पहले हर रोज़ पैगाम तुम्हारा आता था


आना मिलने शाम सवेरे


देखू चौखट खड़ी -खड़ी


पहले तू हंसी फिर मैं हंसा अब हंसती मुझ पर दुनिया सारी  देख तमन्ना जागी थी तुझको

 
शादी तुझी हो मेरी चाहे शादी के दिन मर जाऊ          तेरे लवों पर इक मुस्कान
 पर आज भी मैं चुप हूँ     

 ज़िंदगी है नादान इसलिए चुप हूँ 


दर्द ही दर्द है हर पल इसलिए चुप हूँ

 कह तो दू ज़माने से अपनी सारी दास्तां


पर कोई  हो न जाये बदनाम इसलिए चुप हूँ      

Wednesday, March 5, 2014

बस एक ख्वाब था..........





फिर तेरा चेहरा नज़र आया  मेरे ख्वाबों में,

धुंधला सा , लेकिन अपना सा लगता है,

चुपके से आते हो , चुपके से जाते हो,

कौन हो , क्यों  इतना सताते हो,

अपने होंठों पर क्या गुनगुनाते हो, 
  
कानो में राग कोई बरसों का घोल जाते हो, 

लम्हा फिर वही सुहाना होता है,

जैसे सदियों से हम मिलते हो,

मेरी पलके जब खुलती है,

तो तू नहीं ! 

मुस्कुरा कर खुद पर ही हंस लेता हूँ,

ये तो बस एक ख्वाब था 

सच में अब ये जाना है,

रूप नया , नक्श नए,

क्या फिर कोई  तैयारी है ? 

      मेरे सपनो में आने की.………।  


Saturday, March 1, 2014

मंज़ूर था हमे पर्दा तेरा ……



कल चौधवी की  रात थी 

सब तरफ रहा चर्चा तेरा 

कुछ ने कहा ये चाँद है 

कुछ ने कहा चेहरा तेरा 

हम भी वही मजूद थे 

हम से भी पूछा गया 

हम हंस दिए 

हम चुप रहे 


मंज़ूर था हमे पर्दा तेरा ……  


हमेशा तुम्हारे बारे में ……




मैं रोज़ लिखता था तेरे बारे में 
तुम्हारी अदाएं , मासूमियत , ख़ूबसूरती ,
अचानक उँगलियाँ थम गयी 
क्या लिखू अब ?


तेरा मुस्कुराना ,
रूठ कर चले जाना ,
या फिर मुझे मनाना ,


तलाश है शब्दों की 
शब्दों में छिपे विचारों की 
जो बयां करे हमारी मोहब्बत ,



हाँ ! वही तो होगा प्यार 
बेइंतेहा  प्यार ……… 
जिसके लिए मैं जीता हूँ ,
जिसके लिए मैं मरता हूँ,
जिसे मैं लिखता हूँ ,



आज की सुबह रोशनाई भरी है ,
जो दिल में उमंगें , 
मन में नई तरंग , 
और जिस्म को जिस्म से जोड़ने वाली आश 



ऐसे ही कुछ पल का इंतज़ार था,
मेरा लिखना शायद आज सार्थक हो जायेगा,



उँगलियों के पोर पर कलम लिखने को बेताब है 
कलम को जब भी झटकता हूँ ,
रोशनाई पन्नो पर गिर कर 
तेरा ही नाम लिख जाती है ,
इसका मतलब क्या समझू मैं ?



मुझे इश्क है तुमसे 
या फिर उँगलियों , कलम को ,
आदत हो गयी है तुम्हारे बारे में लिखने की ………



तुम्हारी अदाओं को ,
तुम्हारे हुस्न कि नज़ाकत को पन्नो पर उतारने की ,
एक शब्द और क्या कहु !
जब ये रोशनाई ,
ये कलम ,
ये कोरे सफा तेरे दीवाने हो गए…… 




फिर मुझे क्यों रोकते हो ,
अपने पास आने से ,
प्यार करने से ,
खुद को बाँहों में भरने से ,
एक -टुक तुम्हे निहारने से ,




क्यों नही बुन जाने देते
हम दोनों के बीते पलों को एक कहानी में ,
मैं लिखता हूँ, 
और मिटाता हूँ ,
 फिर सोचता हूँ ,
और फिर लिखता हूँ ,


हमेशा तुम्हारे बारे में ……





Monday, February 17, 2014

मेरे हिस्से में कुछ भी....



 



मेरे हिस्से में कुछ भी नहीं,



कुछ कोरे पल और तेरी यादों कि रोशनाई है,


हर सुबह - सहर ये सोचता हूँ, 


मेरे साथ तुम थी तो क्या था ? 



अब जब नहीं पास मेरे,




तो खालीपन है साथ मेरे………। 

  

शायद मुक़द्दस होंठ जवाब ही दे दे ...



रोज़ उसे एक ख़त लिखता था,


और जब सारी बातें ,सारी नज़मे कह लेता था,



मैं ख़त में अपनी दोनों आँखें रख देता था,



वो जब पढ़ती थी उस ख़त को, 



मेरी आँखें उस वक़्त सुनती रहती थी,














 कि शायद मुक़द्दस होंठ जवाब ही दे दे !